थारै रातौ जंचै

म्हनै असमांनी रुचै

जिणसूं कांई अपां

आवगौ इन्नरधनख बिखेर काढां

दाय पड़ता रंग टाळ

दूजा रंग पोत काढां

कदैई नैठाव सूं सोचज्यै

सायधण!

नैनीक सी बात नीं है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकाश देवल ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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