थूं लूंण री गळाई
सगळ-बगळ छै म्हारी रोटी में
जिण में हर दांण
माथौ लुळाय हाथ घालूं
पैलड़ै कवै
म्हानै जांच नीं पड़ै इण बात री
के थूं है के कोनीं
नेहछौ व्है
जद ठाह पड़ै दूजै कवै
आज रोटी अलूंणी तौ कोनीं
फेर
रोटी में तौ लूंण घालीजै ई कोनीं
अेक घांदौ वळै
के अेक गासियौ खावतां ई बंध जावूं म्हैं
पछै वौ सबद ‘लूणहरांम’
म्हनै रैय-रैय दबावै
डरपावै
अर उणरी कार लोपणी
म्हारै नीं पोसावै
तो ई म्हारी जरूरत रौ लूंण
थूं बणी रेज्यै
म्हैं परसेवा अर आंसू सूं काढ
पाछौ संभळावतौ रेवूंला
अर सबद री कांण राखतौ रेवूंला
कवि जो हूं...