पयाळां ऊंडी जड़ है कविता री

जलमी है मिनख सागै

बधी

संस्क्रितियां सूं आगै

इण रची सभ्यता

सगळी मिनखजात री!

कविता कोई ऐर-गैर चीज कोनी!

कविता कोई

ऐर-गैर चीज कोनी

गंगासिंघ!

अणथम आथडतां आखै दिन

तन-तोड़

सांझ ढ़ळयां

मन-मस्त मजूरां रै

परसेवै रै रैलां री

पसर-पसर पांगरती

त्रिप्ति री गंध है

कविता

कोई ऐर-गैर चीज कोनी!

आखै दिन भटक-भटक

सगळै वन-खंड में

घर री दिस बावड़तां

सरणाटै दौड़ती

भर-हांचळ धीणा री

बाछड़यां तांणी

अ-धीजी तंबोळ है।

वछळ-वछळ झरै है

पाना ज्यूं!

दूध री झारी है कविता

कविता कोई ऐर-गैर चीज कोनी!

सूरज री पैली किरण रै

राम-राम सूं

सूरज री छैली किरण रै

रामा-सामा तक

हळ री मूठ झाल

हे हो, बप्पो कर

बळ-बळतै तावड़ै

बळदां नैं हांक-हांक

हाडका गाळ-गाळ

जमीं जोत

चारो नीर

जीम जूठ

दो-पौर रात बीत्यां

थाकल चानणैं में कठैई

धणीं-धण री

तिरपत चमक कविता है

गंगासिंघ!

मन मांझ पसरता

सपना अर सांयत!

कामना री फुलवारी है कविता

कविता कोई

ऐर-गैर चीज कोनी!

मून में

मन रो गूंजतो संगीत

तरंगाती बंतळ

समोवड़ गूंथीजणो

देह री दिस-दिस सूं

इमरत रो बरसणों

हेज रो ऊफाण

कळी-कळी रो

अजाण फूल में विगसाव

मनस्या रो अणमाप बधैपो

अण-थम गति

तिरपति अण-माप

दीपती, प्राणां री जागती जोत

दीपती, प्राणां री जागती जोत

अन्तस रै रेसै-रेसै!

जोड़ै री खुमारी है कविता

कविता कोई

ऐर-गैर चीज कोनी

गंगासिंघ!

बरसतै असाढ रै

मावस री काळी रातां

पसरयै अंधारै में

कविता एक दीवो है।

पसरो भळै कठैई अंधारो

राजनीति में कै राज में

मिनख कै समाज में

मन में कै सास्तर में

सनमंघा में, घर में

लोक, कै बैवार में

रचना, रचणहार में

पसरो भळै कठैई अंधारो

कविता एक दीवो है

अंधारो को रैवण दै नीं!

मन मांय व्यापी चिनगारी है

कविता

कविता कोई

ऐर-गैर चीज कोनी

गंगासिंघ!

अन्तस री तंत्री रो

सुग-बुग नाद है

खुद नैं तिल-तिल होमतो

अछानों तप है

सरोकारां री समाजी धूणी में

न्यारी-न्यारी भांत सूं

आपरी आहुति

बळै-झळै।

कविता जगन है

कविता कस है

देह री दाझ है

प्राणां रो रस है

नूंवै तेज सूं मंदयोड़ो

सपनो है

निस्वारथ भावना रो!

एक कण रो

सूखम अंस है कविता

अर अणंत वैभव रो

विस्तार

अर सगळै वैभव नै

अणगिनार

ठोकरमार

किणीं अकिंचन रो जीवण

थारै ज्यूं संवारतो

सेवा रो सिणगार ई!

मिनख री जिम्मेदारी है कविता

कविता कोई

आलतु-फालतू री चीज कोनी

गंगासिंघ।

मारग चालता

जमारो बितावता

ज्यूं-त्यूं

आपरो गाड़ो गुड़ावता

नीठ आपरो पेट पाळता

गरीब गुरबां नैं कीं जुलमी, पाखंडी

काठा मजबूर कर

जुलम दाय

आपरा विकराळ पंजा में फांस

लोही पी

हाड़का चूसै

तद

हुंकारतै आभै सूं

बैंगणी लपट लियां

बरसता खीरां री

वाणी है कविता!

ऊकबतै समदर रो

ऊंचो ऊफाण है

वडवानल बण बळतो

पाणी है कविता।

दुर्वासा रै क्रोध री

कहाणी है कविता।

बीजळ री गाज है

क्रांति रो आगाज है

जो कीं सिरज्योड़ो है

ब्रह्मा रै विधान सूं

उण सै नै बाळ भसम करण रो सुर है

सगळी ठग सभ्यता

वौपारी स्रिस्टि उजाड़

कुदरत रै पग बंध्यो

प्रळै रो नूपुर है।

जड़ता नैं भांगण

अर नवता नैं रचण री

रोगलै समाज री

कारी है कविता।

कविता कोई

ऐर-गैर चीज कोनी

गंगासिंघ।

लोही सूं झळा-बोळ

बीजळी देह कांपै

भाखरां रा माथा भांग

पताळ प्रताड़ती

हाथां में पलीतो

अर आंख्या में झर-झर आंसू

कर में खप्पर

गळै मुंडमाल पैरै है

बिखरी जटा-कटा

नर-भसम लिपटी देह

घन-घोर ज्वाल-माल

बानो महानास रो

उण महाना रै मझ मुळकतो

दूब रो कोई तिरणों

सत-सास्वत कविता री

पैली-पैली झढ़ है

घोर विधूंस में

टाबर री किलकारी है

कविता

आलतु-फालतू चीज कोनी

गंगासिंघ।

काक री झाळ में

सिरजण रो सुर सोझै

जीवण रो गुर सोझै

वा है कविता।

वा है कविता।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाळी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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