नीमड़ी नमोळ्यां लागीं, आंकड़ा कै फूल।

म्हारा मन मैं चभै, कुंआरापण को तीखो सूळ॥

चन्दरमा की जान मैं तारां की गाड्यां चाली रै,

छोटी-छोटी बादळ्यां बण-बण अर लाड्यां चाली रै,

ऊपर सूं आकासगंगा रही गगन मैं झूल।

म्हारा मन मैं चभै, कुंआरापण को तीखो सूळ॥

कतनी बार बादळा समदर जळ भर, सरवर पै आया?

कतनी बार बादळ्यां नैं अम्बर सूं आंसू ढुळकाया?

कितनी बार तांवड़ा सूं परणी आंगण की धूळ?

म्हारा मन मैं चभै, कुंआरापण को तीखो सूळ॥

साथणियां की लेर बारणै बैठ पचेटा म्हूं खेलूं,

मार खाकटो, सावली माथा पै सूं कांधा पै ल्यूं,

शरमा जाऊं, छोरा म्हारी हंसै देख जद भूल।

म्हारा मन मैं चभै, कुंआरापण को तीखो सूळ॥

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
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