पग रै खोजां में पाछो मुड़ मूंडो देखूं

दरपण माथै पड्या बेकळू रा पड़दा है!

उण अदीठ अंधारै रा ताळा खोलण री

कूंची है,पण किण रै हाथां में सरधा है?

जोत अभागी—

जाणै है म्हैं जागूं

पण जीवै है लारै आगै रो अंधारो!

बगत बायरै सू बंधियोड़ी सकळ चेतना

काट सकै है काळ, काळ रो फिरतो आरो!

चानणै में लड़थड़ भटक रह्या दो आंधा

तनै सूझतो है, दोनां रा हाथ झाल ले!

गये काल नै आवण आळै अलख काल नै

आज जीवले, तू दोनां रै बांथ घाल ले!

स्रोत
  • सिरजक : सत्यप्रकाश जोशी
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