अम्बि तमे, नदी तमे

देवी तमे सरस्वती।

प्रशास्ता इव स्मसि

प्रशस्तिम्ब सकृधि।।

(ऋ ग्वेद सूक्त-4)

च्यारूं-खूंट अंधियारो मा

उठ रैयो पतियारो मा

ग्यान री जोत जळा दै मा

बिस्वास-बसंत खिलादै मा।

धूंवों बारूदी छाय रैयो

मिनख-मिनख नै मार रैयो

सांति-सूरज उगा दै मा।

जग उजियाळो छा दै मा।

रंग फूलां रा उड रैया

गाभा कळियां रा उतर रैया

बिरछ सै नागा हुय रैया

पंचरंग चोळा पैरा दै मा।

तन-मन बिसधर पळ रैया

खुद खुद नै डस रैया

इसो इमरत बरसा दै मा

मिनख नैं मिनख बणा दै मा।

इसो बसंत खिला दै मा

जग नै सुखी बणा दै मा

जस रा दीप जळा दै मा

सत रा दीप जळा दै मा।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा
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