बो कुण हो? जगत रो नेता,

जनता री सरबोपम भावण रो धोरी,

जिण मिनखां रा भाग पळट्या, उफाण मिटाया,

जिकी धारावां अस्त व्यस्त बिखरी ही, बै जोडी।

अक्टूबर अेक नुंवो जुग थरप्यो,

सीव रा सैनाण घणा ऊजळ आंकीज्या,

‘रिनेसां’ अर ‘अेटिला’ रा रजूना जुगां सूं,

इतिहास री बातां में जिका भाखीज्या।

जग जूनो कूड़ो जतावतो, खीण अर मुरदाड़,

अेक नुंवो जुग-सगळां री धरोवर जिसो,

अक्टूबर री आंधी में बधतो लेनिन,

नुंवै रै जलम सिखरां, जूनै रै पतन सो।

धरती! बिरमांड में, गमतो तो पिंड अेक,

तारां रै गोळ में सोवै हो मतै ई,

बो नांव जस सूं तनैं ढक नाखसी

जोयो नईं पैलां तैं जिसड़ो कदे ई।

बो मुवो; जीवण उणरो खिण भर सो,

अणंत काळ में, जीवै किरत बींरा

मौत रै पार जियै, दीन्योड़ा परचा बै

दीपता, मारग दरसावता जमी रा।

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : वेलेरी बर्‌यूजोव ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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