खुलता होटां पै
ऊंदी हथेळी को दूनो
धर’र
बरसां सूं
रोकबो छावूं छूं
पण
बार-बार
बारै खड ज्या छै,
‘अन्नाता-अन्नाता’,
‘घणी खम्मा-घणी खम्मा’।
तू सरजन छै
तो आ
म्हारा होटां पै लगा दै
टांका।
डरपै मत
कै
भीतर रहबा सूं
म्हारो पेट फुला देगा
‘अन्नाता-अन्नाता’
घणी खम्मा-घणी खम्मा’
करबा सूं
पेट को फूलबो
भलो छै
म्हूं बकरबो न्हं छावूं
नाक की धूंकणी
फुला-फुला’र
बारै काडबो छावूं छूं
पीढियां को लावो
ईं लावा की लाय में
भसम करबो छावूं छूं
‘अन्नाता’ अर ‘घणी खम्मा’।