कालै, अेक चिड़कली

सोधती-सोधती आई

आपरौ घर

म्हारी बालकनी में

हूयगी आकळ-बाकळ

देख आपरा आसरा नै

नीं जाणै, किण-किण रूप में

ढळियोड़ौ

म्हारा घर में

हां, उठै लटकै हो

माटी रौ, अेक छोटो सो’क

बुगचियौ सो घर

उणरै आळौ बणावण सारू

ऊठगी झाळ-झाळ काळजै उणरै

मिनख री इण किरपा माथै

नीं चावै वा

मिनख री धींगाणी किरप

उणनै चावै,

खुल्ली हवा अर

उजास रै मांय

कुदरत रै बीचोबीच

चांचां री सुघड़ाई सूं

खुद रौ बणायौ

अेक आळौ,

किणी हरियल डाळ.!

जकौ सूंपीयौ हौ उणनै

खुद मां कुदरत।

उणमणी सी चाली उठै सूं

मिलगी टिलोड़ी मारग मांय

बांटी काळजा री पीड़,

दोनूं साथणियां

पड़गी घाळमतोळ

किंकर देवां दण्ड इण मिनख नै

आपां रा घर उजाड़ण रौ.?

इतरै, आयगीवी, अेक गावड़ी

हांपगी-हांपती, तपत सूं भूंडै हाल

सुणी दोनां री बंतळ, ध्यान लगा’र

बोली

बायां मती करौ इतरौ सोच

म्हैं जाणूं हूं

करै है ढपला

रूंख लगावण रा

फगत खिंचावण नै फोटू

अखबार सारू,

भरै है दंभ कूड़ौ

ऑन-लाइन रौ देय झांसौ

कागद बचावण रौ,

लगौलग बाढै है रूंख

मकानां सड़कां अर लूंठा संस्थाना सारू

संकडाय आपांरा बन

व्हैगौ है आंधौ

नीं दीखै इणनै

बधती तपत, घटती बिरखा,

आप बड़ जावै

घर मांय

काठा भीड़ किंवाड़

ए.सी. रै सरणै

जकौ फैंके

बळती हवा बारै कांनी

अपांरै सारू,

टणका-टणका मंचां माथै

गळौ फाड़

करै बात

‘पर्यावरण’ बचावण री

पण मंच सूं उतरतां

आस राखै सांम्हलिया सूं।

पण तौ ई, राखौ थोड़ौ थावस

क्यूं कै

अबै घणौ बगत नीं बचियौ है

इण स्वारथी मिनख कनै।

कुदरत खुद चेतगी है अबै

मिनख री इण हुंसरड़ाई सूं

वा इज देवैला इणनै

इणरै करमां री सजा

रूंख बाढण री सजा

लागैला सराप इणनै

अबोला पांख-पखेरूं,

लाचार जीवां

अर खुद मां कुदरत रौ

बळ’र भसम हुवण रौ।

स्रोत
  • पोथी : आळोच ,
  • सिरजक : डॉ. धनंजया अमरावत ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन, रातानाडा, जोधपुर (राज.)
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