याद घणो आव है

परदेसा बठ्या नै

दरवाजो कोट रो

टाबरपण सू जाणू

एक बडो, दो छोटा

दरवाजा पचाणू

पण, कींया?

एक बार

बाई री गोदी में

मोदमगन जद चाल्यो

सामी आती कतार

ऊंटा री जायी जद

मन भायो विराळो

नखराळो टोडियो।

गळ मैं घूघरा

गणमणगण गूंजै हा

मन म्हारो नाच्यो हो

चाव घणो चित छायो।

बाई पण डरती सी

पसवाडै दास पर

लेय मनै ऊभी ही

टोडियो हा देख

मनडै रो म्हारो जद

आय थम्यो सामो हो

हूं तो, पण भोळो हो

गळै रो घूंघरो

लेय लियो हाथा में

बजावण लाग्यो बौ

होट अड्यो माथै रै

बाई जद किरळाई

अटक्या सै बैतोडा

आसपास, टोड फिर

मिलणै में अडास

हूं पण, बाई नै

बिरळाती जोय जोय

कूकण नै लाग्यो हो

लोगा दी लाठी री

टोड रै काना में

चमक-चमक

उछळ-उछळ

मिळबा नै म्हारै सूं

टोडियो दोड-दोड

आतो, पण लोग

हुया गूंगा सा

नी समझ्या

म्हारी मनवारा।

टोड रै गळ घूंघरा सूं

रमण री बात घणी

हाल मनै चेतै है

जदे कदे देखू इण

दरवाजै कानी हूं,

बारबार दिरस बो

दीसै अर मन म्हारो

नाचै है।

लोगा री गूंग माथै

बाई री चीख सागै

टोडियै रो प्यार म्हारी

नस नस में व्यापै है

याद घणो आवै है,

परदेसा बैठा नै

दरबाजो कोट रो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : रामनाथ व्यास ‘परिकर’ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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