कींकर भरोसो करूं

सबदकोस माथै।

कोई जरूरी कोनी

कै सबद रो अरथ

असल जिंदगाणी में

बो हुवै

जको मंड्योड़ो हुवै

सबदकोस में।

आपरै सारू

हरख रो मतळब

उछब हुय सकै

पण म्हारै खातर

इणरो अरथ

फगत रोटी है।

आस रो मतळब

म्हारै वास्तै

उडीक है

जको आपनै

किणी सबदकोस में

कोनी लाधै।

सबद कोस दांई

कोनी म्हारी जूण

अकारादि क्रम में

खिंड्योड़ी-सी है

आंकी-बांकी

सबद आडी रै उनमान।

स्रोत
  • पोथी : म्हारै पांती री चिंतावां ,
  • सिरजक : डॉ.मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : मनुहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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