तड़कै ई तड़कै सूरज की किरणां
छोड दुसालो जागी।
कोई राती, कोई पेळी,
बोई लीली, कोई गुलाबी।
ऊं घणनींदी सी उठी ओर
सरवर की आडी भागी।
मलग्यो डूंगर गेला में,
बोल्यो चालां मेळा में।
वा किरण बच्यारी रुकगी
डूंगर कै ऊपर झुकगी।
डूंगर को माथो काळो
रंग दियो रूप रूपाळो।
चालूं म्हूं मेळै चालूं
पण प्हैली थोड़ी न्हाल्यूं।
यूं क्हैर कंवारी उंठी
सरवर की तीरां भागी।
यूं ऊबी सरवर तीरां
जाणै छोटी सी मीरां।
झट भायेली सूं बोली
तू खोल दे म्हारी चोळी।
म्हूं एक ई गुपची खाऊं
अर झटपट पाछी जांऊं।
ऊबो डूंगर गेला में
म्हां डूंगर गेला में
म्हां जावांगा मेळा में।
भायेली चोळी खोळै
खुद केस खोलबा लागी।
ज्यूं खुल्यो केस को घेरो
तो छाग्यो घोर अंधेरो
साथण नै खोली चोळी
तो रंगी कर्याड़ां रोळी
जद छम-छम पैड़्यां उतरी
पैड़्या की काळी छाती
पगल्यां सूं होगी राती
पाणी में छाया नरखी
तो मन ही मन सरमागी
तड़कै ई तड़कै...
खुद की छिब देखी प्यारी
तो मरी सरम की मारी
थोड़ी सी बगल्यां झांकी
अर झट पाणी में डांकी
सरवर नै अंग लगाई
तो या सरवर पै छाई
तो या सरवर पै छाई
डूंगर की बातां भूली
प्रीतम की प्रीत भुलागी
तड़कै ई तड़कै...