बळबळता तुवा पर

फटाक सूं पड़ी रोटी

छटपटाई, तो

आंगळ्यां पपोळ’र

दूजी कानी

करवट दिल दीनी

पूठ पर भी

जद पड़ी आंच

अर् चामड़ी

बळबा लागी

तो चीमटो,

फेरूं दूजी कानी

पटक दीनी

तुवो बोल्यो—

‘कद तक इयां

उठा तक इयां

उठा पटक करसी

कांई म्हारी

ताकत ने भूलगी?’

रोटी हंसी अर् बोली—

रे काळोट,

थारी ताकत दूजा रे बळबूते

मूं तो म्हारा ही दम पर जीवूं हूं

या कहता-कहता

गरब सूं फूलगी…।

स्रोत
  • पोथी : अणकही ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • प्रकाशक : यतीन्द्र साहित्य सदन (भीलवाड़ा) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै