कालै नागबल में मिळियौ
म्हनै
हेमाळा रौ पोतरौ
धोळौ फेंटौ बांधियां ऊभौ छौ
हरी-भरी रुंवाळी री धज सूं अकड़्योड़ौ
आंटा खायोड़ी नदी जैड़ौ नैचौ पंपोळतौ
कदास होका सारु चिलमियौ हेरै
सूरज नै गुड़गुड़ावण सारु नूततोड़ौ
ठारी में
निवास किण रै नीं चाहीजै?
म्हैं पूछियौ-कीकर सावळ छै?
‘ठारी वैसी पड़ै’ उण कह्यौ
म्हैं कह्यौ—''जीव रौ जाबतौ राखजै!''
वौ कीं नीं बोल्यौ
ओसियाळी निजर सूं भाळतौ रह्यौ अेक टक म्हारी कांनी
म्हैं कह्यौ म्हैं समझूं थारी पीड़
भाखरां रा पंख बढ्या
तद सूं अेकणठौड़ पड़ियां-पड़ियां
कड़ियां कुळण लागी व्हैला
पूठ में परसेवा री चिपचिप
बिना छतरी खुद माथै बिरखा अर बरफ झेलण रौ धयौ
घांटी नीं मुड़ण सूं
अेक री अेक कांनी भाळण री कांयस
निजरां सांम्ही अेक रौ अेक दरसाव बरसां न बरस
बोलै-बतळावै ई किणसूं?
अलायदी असेंधी ठौड़ जठै आभौ थारी भासा नी जांणै
म्हैं करूं थारी जाझी मनवार
‘हालौ नीं, पधारौ म्हारै दैस!’
बोली-बोली उणरी आंख डबडबाय जावै
म्हैं ई दरजै लाचार
कठा सूं लावूं अरबद नाग
जिकौ थां पांगळा नै पूठ माथै लाद
लेय चालै म्हारै सागै-सागै
घणां ई विंवर छै, पताळ-परस
जिकां में विस्वामिंतर री गाय टाळ
नित थरकीजै कोई न कोई
हेमाळै रां फरजंद!
थूं अर म्हैं दोनूं लाचार
सिधावूं
थारै अठै सूं खाली हाथ
इण खतावणी सागै
बेटी रा बाप!
सियाळै तप घाल हाथ तापतौ रेज्यै
गुलुबंद री तोजी बैठाज्यै
बण आवै तौ अेक फिरन सिंवाय लेज्यै
कठैई ठंड खाय जावैला!