बा बोली

मैं बावळी हूँ!

मैं जद-जद

तन्नैं देखूं हूं

मेरो मन पाप करण नैं करै

अर मेरो तन पुन्न करण री ठांण बैठै।

बा मुळकी

तन रा पुन्न

मन रा पाप हुवै,

अर तन रा पाप

मन रा पुन्न।

बींरी मुळकण रै कमरै मांय

लाल गुलाबां रो बिस्तर हो।

मैं पड़तां

इस्यो उठ्यो कै

आज तक नीं बैठ्यो

अर बा लेटतां

पतंग ज्यूं उडी

अर आज तक नीचै नीं उतरी।

ईं सरीर रै मांय छटपटाता पाप

रमणीय पुन्न भी हू सकै,

अर ईं सरीर रै मांय

पद्मासन लगा रै बैठ्योड़ा पुन्न

जाणै कित्ती उमावसां नै

पुन्यूं बता'र पाप कमावै।

स्रोत
  • सिरजक : त्रिभुवन ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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