बां रै कैवण मुजब
अळगौ-अलायदो है
म्हारो होवणो
म्हारी काया रै होवणै सूं...
ठीक है! मान लूं म्हैं,
कै नीं हूं म्हैं
फगत औ सरीर...
नीं हूं सरीर,
पण सरीर ई
क्यूं करै संभव
थारै खातर-
म्हारै होवणै नै!
होवतो रैवूंला
काया बिनां कीं ई
पण म्हैं
औ 'म्हैं' तो
पकायत नीं हो सकूं
इण खोळियै रै नीं रैयां।