आज सांझ,
ओ छिपतो दिन
कीं कविता सो है
एकलपो उचट्यो सो मन
की कविता सो है।
दरखत-दरखत हरियांखी
है नई-नई कीं
आ सैंधी सी कीं।
ओ नीलो आकास सघन
कीं कविता सो है
एकलपो उचट्यो सो मन
की कविता सो है।
चीज-चीज
कीं चीज सरीखी सी लागै है
एक चीज ई
यूं लागै, लारै आगै है
एक चीज ई
यूं लागै, लारै आगै है
ई तारै री नई खींवण
कीं कविता सो है
अै टाबर, घर रो आंगण
कीं कविता सो है।