कविता नीं है प्रळै-काळ रौ रूंख—
जिकी अवतारां रै पगथळियां तळै पसरै।
के भूख-बिखै रै देस में
सोनलिया सबदां साथै
गीत गावै गढ-किलां रा!
के 'कमेण्टरी' करै—अपणा उत्सवां री।
कविता तौ झर-झर कंथा कबीर री
थार में सेवण-भुरट सागै
डग भरती गोडावण
डहकती, गोळ्यां बिच्चै जूंण गुजारती।
उत्तरादू, काजळिया कलायण है कविता
जिणनै देख-बांच गांव नाचै
नगर हांफळै।
कविता—परझलती 'झळ।'
'बेटौ बढई रौ'
जीयाजूंण री कोरणी कोरै
पूरी चूंप।
गुजारै 'फाट्योड़ी जेबां सूं जमारौ।'
मांडे सबदां सूं 'मखमल मांडणा।'
राचै-आखर में 'बाघो-भारमली।'
भर लेवै-'बाथां में भूगोळ।'
कविता 'अंधार-पख' री कूंत
हां
केई मिनखां सारू फकत कोरी
'इन्द्रजाळ' है कविता!
म्हारी निजरां—
कोरौ तीखौ सवाल है कविता।