जद कीं हाथ नीं लागै

अर हाथ मसळतै मिनख नैं

आपबीती सारू नीं मिलै सबद

तद

झाळ खायोड़ो मिनख

मांड काढै है कविता

हां, कविता...।

भलां वीं रो विसै

प्रीत हुवै कै जुध

कै फेर चारूंमेर पसर्योड़ी

दुनिया री कोई दूजी चीज

पण कोनी

झाळ सूं बेसी।

बियां कविता

तद हाथ लागै

जद कीं और हाथ नीं लागै!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : कुमार अजय ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै