जद कीं हाथ नीं लागै
अर हाथ मसळतै मिनख नैं
आपबीती सारू नीं मिलै सबद
तद
झाळ खायोड़ो मिनख
मांड काढै है कविता
हां, कविता...।
भलां ई वीं रो विसै
प्रीत हुवै कै जुध
कै फेर चारूंमेर पसर्योड़ी
दुनिया री कोई दूजी चीज
पण कोनी
झाळ सूं बेसी।
बियां ई कविता
तद हाथ लागै
जद कीं और हाथ नीं लागै!