अनोखो अर मजैदार, ओ संकळण
कविता रो जिकी मुस्कल सूं कविता है
लेखक पूरणकाम हुयग्यो
अेक टेप-रेकार्ड करी ऊंधी।
इसा अरथहीण ध्वनि संयोजनां में
मनैं कोई अेक नुंवी बात लाधै;
पण मिनख री इंछावां रो बळिदान
इसै अेक छोरपणै रै खेल माथै?
कईं म्हांरी सुगणी रूसी भासा
चिड़कल्यां री चींचाट बण सकै?
चिंतण सागै, ईं रो जींवत सार,
सबदां सूं बदर हुयो?
नईं, कविता रा धोरण आंक्या
जाणै अेक नसकै माथै हुया।
आ सबद री रम्मत नईं, खेलारां सागै
जिका टोकरा अर टोपा लियां नाचै।
जिका जीवण रो रस छक’र पीयो
अर बाळपणै सूं कविता रो स्वाद लियो
रूसी सूं हेत, आपरी देसी भासा रो मोल
ईं री साच अर अकल रा बोल।