अंधारै मांय

हाका करती

धमकावती आवै पून

चमकै बैरण बीजळी

अर

धोरा उडावती

उपड़ै है आंधी

बिण बादळ

बरसै मेह

ऊंडी आस

हियै री अकड़ सूं चालै सांस

साच्याणी

अबखो है मारग

म्हूं

धमीड़ा खावूं...

सिरजूं आखै जग री पीड़

कविता

खोलै

आस रा किंवाड़

अबखै बगत।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : राजेश व्यास ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ
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