(आपरै पंजाबी कवि-भायलै सुरजीत पातर री गजलां नै तरन्नुम में सुणतां)

थारौ गावणौ

जांणै प्रीत जित्तौ उंडै बेरा रै तळा में

ठाडै अंधारै सीर री टप-टप

ज्यूं आंसू-ढाळ राग में झरता व्है टोपा

किणी विजोगण री आंख सूं

थारै आरोह री थरथराट

जांणै धंवर रै धुंधळकै

कोई फूल री पांखड़ी खुद माथला

झोयला रौ टोपौ झरतां ईं

धूजती व्है

किणी पखावजिया रौ हाथ उड़तां

जांणै बरकतौ व्है गोड रुंख रौ

के पछै बांसळी री फूंक रै समचै

डुसकती व्है चूकती बनराय

के किणी विजोग रै पाक्योड़ै घूमड़ै

संजोग री ठबक लागी व्है

अर पीड़ रिसण लागी व्है

थारी मुरकी

जांणै अविनासी रै दरबार

वीण रा तार माथै

किणी तुंबरु री आंगळी रौ सपनौ चोट करतौ व्है

के पछै संगीत-ग्रंथां में गूंचळी व्हियोड़ी

रागणियां रा झूलरा सूं भटक्योड़ी

कोई अेकली डरपती रागणी

मूंन झालण सूं पैली

हिचकी लेती व्है

थारै कंठ सूं

कोई सूंपी दीसै पीड़ री हेमांणी

सुरजीत! थारै कंठां

अर थूं ईंडा री गळाई

लगोलग सेवै छै उण पीड़ नै

म्हैं जांणू

कवि रौ कणैई-कणैई

आपरै पाळोकड़ दरद नै

पुचकारण रौ मन करै

अर कांम

वौ आपरा बिखा नै पराया दरद री ढाळ में

भेळ नै करै

छांनै-मांनै

म्हैं मांनू

कवि व्हैणौ इज

पीड़ री रियाज करणौ व्है, फगत!

स्रोत
  • पोथी : हिरणा! मूंन साध वन चरणा ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकास देवल ,
  • प्रकाशक : कवि प्रकासण, बीकानेर
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