माटी रो

गोळ घेरो

कोई मांडणो नीं

अेनाण है डफ रो

काठ सूं

माटी होवण री जातरा रो।

डफ हो

तो भेड भी ही

भेड ही

तो चरावणियां भी हा

चरावणियां हा तो

हाथ भी हा

हाथ हा तो

सो क्यूं हो

मीत हा

गीत हा

प्रीत ही

जकी निभगी

माटी होवण तक।

स्रोत
  • पोथी : आंख भर चितराम ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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