(अेक)

अदीठ नै 
देवै दीठ, 
थारै-म्हारै 
बिचाऊँ रो भरै
आंतरो।

गूंगा होवता थकां पूगै 
थां कनै म्हारा
अर
म्हां कनै थारा
सबद।

म्हूं पोखू 
म्हारी पीड़, 
भेळौ करूं हेत

आव—
अबखै बगत सारू 
अंवेरां आपां 
थारै-म्हारै बिचाळे रा 
अणकथीज्या 
सबद।

(दोय)

नाप लेवै सबद 
अरबां-खरबां 
कोसां रो आंतरो 
बूर देवै 
मन मांय 
खुद्योड़ी 
अळेखूं खायां।

घणकरी बार 
सुळझाय देवै 
अंतस मांय
उळझ्योड़ा
हजारूं-हजार
गुच्छा। 

सबद पुळ है 
अबखै बगत रा 
जीवण-जातरा रा।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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