म्हे रजथान धरा रा वासी

म्हे थामां भूंचाळ नै

जग में काळ मिनख नै तोड़ै, म्हे तोड़ां हां काळ नै।

च्यारूं फेर रेत रो समदर

पहाड़ सरीखा धोरा

सूना साव, मोत री माफक

तन सूं, मन सूं कोरा

बा सागण कबीर री माटी

जिकी मिनख नै रूंधै

पण म्हे ईं माटी नै रूंधा

हो’र दोरा सो’रा।

अळ गोजा री धुन पर गाता

चढता गिणां ढाळ नै

जग में काळ मिनख नै तोड़ै म्हे तोड़ां हां काळ नै।

भुँवता साल सुवाया दुरभख

भीख मिलै नीं माणी

अेहड़ी भूख जिकी रै आगै

मौत भरै है पाणी

म्हे भोगां भूख’खा परा

अरै घास री रोटी

म्हे प्रताप रा बेटा हां

बाजां सूरज हिन्दवाणी

म्हे आडौळां सदियां सूकी

आड़ावळ री पाळ नै

जग में काळ मिनख नै तोड़ै, म्हे तोड़ां हां काळ नै।

सूरज सूं झड़तै अंगारां

जुगां जुगां सूं दाह्या

तिरसा री तिरसूळ सहां

जद मरज्या हिरण तिसाया

जे कोई अणबोळ बोल’र

मांगै बाबा! पाणी

सूकै कंठ भुळावां

पाणी आंख्यां में है, भाया।

शिव री दांई जै’र मिल्यो

जे काढ्यो फोड़ पताळ नै

जग में काळ मिनख नै तोड़ै, म्हे तोड़ां हां काळ नै।

म्हांनै लाय बाळ’र धापी

उडा उडा’र आंधी

म्हे नित पाटै उतर उतर’र

नई झूंपड़ी बांधी

साप गोयरां रै सिर माथै

जिया हीक री हिम्मत

अनै टूटती जीण-जेवड़ी

गांठ-गांठ कर सांधी

किरसण दांई नाग सो नाथ्यो

अंधारै बिकराळ नै

जग में काळ मिनख नै तौड़ै, म्हे तोड़ां हां काळ नै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी भाषा साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्टभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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