पांखी

आपणी जोड़ायत रे साथै भरी

जीवन री पहली उड़ान

तो आकास

आंगणा ज्यूं छोटो लाग्यो

आपणा पंखां री खिंवता

अर, मन रो विस्वास

निश्चै री मजबूती

न्ह करबा दियो

फैलाव रो आभास,

उड़ाण रो लक्ष्य

अनंत री लाम्बी दौड़ तलक

पांखी ने कांई ठा हो

आपणो जाळ फैला’र

लुक्योड़ो बैठ्यो है

काळ-बहेलियो

जो फांस लेसी फंदा में

अणाचूक

हाँ सांच ही है

जद

पसर जावै मोह-पांख

इच्छावां सूं आगै

बध जावै लोभ

तो अस्यान ही

आपणी फंदा ने कस’र

सामै जावै

काळ-बहेलियो

स्रोत
  • पोथी : दरद डूँगरा : दरद समँदरा ,
  • सिरजक : नन्दकिशोर चतुर्वेदी ,
  • प्रकाशक : ज्ञान प्रकाशन मंदिर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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