आज सुबै कचरो चुगण आळी बा छोरी

घर रै बारे मिली

काळो घाघरो, काळी कुर्ती

अर लाल चूंदड़ी ओढ्यां

घाघरा जिसो पोत्योड़ो सो

काळो रंग

'भाभीसा पाणी पिलादो'

मैं जग भर अर लाई

बूक मांड'र छोरी जियां पाणी पियो

छोरी रै हाथां रो रंग झर्‌यौ

मैं अचंभा ऊं उण रे सामी जोयो

जद बा मुळक'र कियो

कांई करां भाभीसा

काया रौ रंग...

काळो कर्‌यां पछै घर बारै निकळा

जद शाम तांई सोरा पाछा घरां पूगां

मिनखां री नीत तो थे जाणों हो

अर छोरी झट देणीं

झोळै माय ऊं काळै रंग री डब्बी काढ'र

आपरौ मुंडो अर हाथ पाछा

पोत लिया।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : प्रमिला चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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