चावै सुख जावै बहती नदियां

रीत जावै भर्या तळाव

चावै रुख़ड़ा ले लै सन्यास

आपणा संदा पत्तां झड़ा’र

चावै सूरज बरसा दै आग

अर मूंडो मोड़ लै बादळा

चावै खेतां मे रहै जावै सूंड़ खड्या

हो जावै हरी दूब, सूख्या तुड़कल्यां

पण ज्हां ताई छै गार म्ह थोड़ी सीक बी नमी

व्हां ताई पड़ैगो काळ।

स्रोत
  • सिरजक : किशन ‘प्रणय’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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