जूनी बातां रा जूना ऐहनाण-1

कर में कड़तू, हाथ भूंण पर, जोर लगा'यर गावे है।
खामीड़ा बळध्याँ ने थामी, चड़स भूंण टकरावे है।
कीली खोल किसना रा जाया, पेट मरोड़ा खावे है।
झांटे बड़ती गजबण दीसे, भातो माथे ल्यावे है।
झट खामीड़ो कीली खोली, जळ ढाणां ढ़ळकावे है।
गड़ गड़ करती गड़गड़ियां रो अब मनड़ो मुस्कावे है।
ओ चितराम आंख सूँ देख्यो, जूनो जमानो आवे है।
क्यूं भाया 'भावुक' भरमावे, रांपारोळ मचावे है
कोरोना रा कस्ट काळ में, सांची बात बतावे है।

जूनी बातां रा जूना ऐहनाण-2 

गोळो

गोळो गाळो घोळतो, ओड़ू में हर ठौड़।
जळ में जद घुळ ज्यावतो, निपजे नाज किरोड़।
कणां दुवाई न्हाखता, कठै रसायन खाद।
जो गिंहु निपजे मौकळा, लागे घणाँ सुवाद।
टाबर करता कोड सूँ, गाळा सूँ घमसाण।
क्यारां में करसो करे, गोबिंद रा गुणगान।

जूनीं बातां रा जूना ऐहनाण-3

हाळीड़ो अर ठामणी, कण्यो करे किलोल।
हींचारा रा भायला, खामी कीली खोल।
लांगळी अर पूंछड्यो, पाळै सांची प्रीत।
खामी कीली खोलतो, गावे हर रा गीत।
पूंजाळी घिल्या घले, बळदाँ री गळबांण।
जूनी बातां मांडदी, ऐ जूना ऐहनाण।
ऊंडी टूंडी मांयने,  दोय डेलढ़ा जाण।
कांटी खामी न्हाखतो,  गिण गिण के करसांण।
सौ कांटी सरकायके, सौ बारां रो मेल।
बळध्या खामी खोलतो, करसाँ हंदो खेल।
स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : भवानीसिंह राठौड़ 'भावुक’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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