मन रा मीत कांन्हा रे—

घर-घर सूं भागी आई गोपियां,

जमना रै कांठै रमल्यां रास,

नटवर नागर,

अेकर बजादै थारी बांसरी।

मन रा मीत कांन्हा रे—

पिचरंग घाघरिया घेर घुमेर,

ओढण तारांळी बोरंग चूनड़ी

बांयां में बाजूबंद री लूंम,

पगल्यां में बांध्या बिछिया बाजणा

आभा में पूनम केरौ चांद,

आकळ उडीकै थारी गोपियां।

मन रा मीत कांन्हा रे—

मिमजरियां भरदै वांरी मांग,

हाथां रचादै मैंदी राचणी,

सुळझादै उळझ्या कंवळा केस,

फूलां सजादै बेणी नागणी,

अंतस में भरदै गैरौ हेत,

नैणां में भरदै सुरतां सांवळी।

मन रा मीत कांन्हा रे—

गोयर सूं काळी धेण उच्छेर,

गोहै उडीकै साथी ग्वाळिया।

मटकी भर मांखण लीजै चोर,

मावड़ नै देस्यां मीठा ओळमा।

पिणघट पर गागर दीजै फोड़,

रस में भींजैला कोई गोरड़ी,

लुक जास्यां कंवळां केरी आड़,

थारै मनांवण करस्यां रूसणा।

आवैली सांवणियै री त़ीज

झूला घलाद्यां बेगौ आवजै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

नुंवी सुणी रे म्हैं बात,

फौजां तो चाली थारी जुद्ध में,

कुरू रै खेत घुरै त्रंबाळ,

संख सुणीजै सेना सज्जणा।

अंबर में उडती दीसै खेह,

वाहण तौ चाल्या थारा पूंन सा।

हस्ती घुड़लां री चतरंग चाक,

धजा फरूकै थारै सेन री।

बीजळ सी खागां केरी धार,

बांका धनखां रा तीखा तीरड़ा।

मैंगल ज्यूं झूमै रे जूंझार,

धरती धूजै रे अंबर लड़थड़ै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

कुण थारा दोयण कुण रे सैण,

राता लोयण क्यूं बांकी भूंहड़ी!

धारण क्यूं करिया रे कड़ियाळ,

छोड्या पीतांबर क्यूं रे सोहणा,

सीस बचावण क्यूं सिरत्राण,

मोड़ क्यूं उतार्या मोर पांख रा!

मुरली रै बदळै कर कोदंड,

चिरमी री माळा आगी क्यूं धरी!

मन रा मीत कांन्हा रे—

जग में जे मंडग्यौ घमसांण, तौ

भाई पर भाई करसी वार

आपस में लड़सी मरसी, मांनखौ।

चुड़ला फोड़ैला काळा ओढ़,

अमर सुहागण थारी गोपियां।

कांमणियां बिकसी बीच बजार,

कुण तौ उघड़ी बैनां नै ढाकसी।

पिरथी पुरखां सूं होसी हीण,

टाबर कहासी बिना बाप रा।

कुण करसी धीवड़ियां रो ब्याव,

कुण तौ कड़ूंबौ वांरौ पाळसी!

अणगिण मावड़ियां देसी हाय,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

जग में जे मंडग्यौ घमसांण, तौ

कुण तौ बणासी सतखंड मैल,

कुण तौ चिणासी मैड़ी-माळिया!

कुण तौ उगेरै मीठा गीत,

कुण तौ बांचैला पोथी पांनड़ा!

कुण करसी गोखड़ियां में जोत,

कुण तौ मांडैला आंगण मांडणा!

कुण तौ मनावै बार तिंवार,

कुण तौ तुळछां गवरां नै पूजसी!

अणपूज्या सात्यूं सिंझ्या देव,

कुण तौ करसी रे मिंदर आरती!

मिटता जीवण री थनै आंण,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

जग में जे मंडग्यौ घमसांण, तौ

कोयल कुरळासी बागां मांय,

नाचंता थमसी बन में मोरिया।

चीलां मंडरासी हरियै खेत,

गीधण भंवैला सगळै देस पर।

डाकणियां रमसी रात्यूं रास,

चौसठ जोगणियां खप्पर पूरसी।

धरती माता रौ लागै स्राप,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

जग में जे मंडग्यौ घमसांण, तौ

भातौ ले भंवसी रे भतवार,

हाळी जद लड़वा जासी खेत में।

हळ री हळवांणी बणसी सैल,

खूरपी सूरां री जड़ियां वाढ़सी।

मुड़दां री लोथां रौ निनांण,

लोई री पांणत व्हेसी रेत में।

कांमेतण देसी थनै गाळ,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

जग में जे मंडग्यौ घमसांण, तौ

जमना में लोई रैसी नीर,

माटी रै जासी लाखां बोटियां।

बस्ती में घावां रिसता सूर,

लूला लंगड़ा बण थनै भांडसी।

अणघड़ रैजासी सगळी भोम,

ऊजड़ विरंगी होसी कोटड़ियां।

क्यूं मेटै रखवाळां रौ नांव,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

मन रा मीत कांन्हा रे—

आजा रे दूधां धोल्यां हाथ,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै

गोरस मांखण सूं रंगल्यां होठ,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

आजा गोरी नै भरलै बाथ,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

आजा रे पिणघट करल्यां बात,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

आजा रे ओज्यूं रमल्यां रास,

मुड़जा, फौजां नै पाछी मोड़लै।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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