(अेक)

बुरकां सूं बारै झांक’र
हंसतोड़ा दांत दिखाया उण,
ज्यूं ससियौ झांकै
ठांसै रै गैलां,
अर धरम रा देवता
राजी हुय केवण लागा
औ ससियो नी है
औ है सेई
जिकौ जाणै है
आपरी रुखाळी।
इण दुनिया मांय
सबसूं भूंडौ सबद है बुरकौ।

उण झांक्यौ
जांत पांत री पेड़ी सूं आगौ,
ज्यूं झांकै है चंवरा री चोटी माथै
तूरी री बेल,
उण रै बिगसण रौ सुख,
असीम हौ।
जिकौ असीम हुवै
वा ईज योग हुवै
अर जिकौ नीं फुसळीजै
उणनै माया केवै।

(दो)

म्हैं देखां हां
टूटती सपनां री ऊंघ,
ऊंघ ई नीं, गुलर ऊंघ।

बायां, जिकण नै
देवळ मांय दिवळौ जगायौ,
बायां जिकौ घर मांय है,
अेक गुलाम।

बायां जिकौ जियाजूण मांय
मुगत सांसां री हकदार ही,
पण धोई उण
पीढ़ियां री लूर,
ओढ़ती रेई आदमी री
जबराई,
पुरख जिकौ नीं है
मिनख,
वा चावै कै अेक दासी,
सदाई उण रै आंगण ऊभी रेवै।

पुरख जिकौ कदै ई नीं चावैला कै
अेक बाई संभाळै दुनिया री रीत,
सगळा समाज अेक पाप रौ घड़ो,
सगळा घर अेक अंधार तळौ,
सगळा पुरख अेक सड़ियोड़ी चड़स,
दुनियां रै सांच री डोर
अर दुनिया री पीड़ रौ पाणी,
दुनिया रै पुनारथ रौ आखर
अेक वा ईज है
वा साची सगती,
वा उण रामै अर सामै री मां,
वा ब्रह्म सूं बधती,
वा दिवळौ सांच रौ,
वा उजास आदमियत रौ।

(तीन)

औ कुण बैठी है
मून हुयां
कुण कीनी गूंगी इणनै,
इणरी आंख्या मांय
औ कुण घाल्यौ
कोड री जागा भै रौ सुरमौ।

औ कुण रोवै है
चूल्हा री गोढ़,
गुलामी री राब मांय
काठै काळजै री डोई हलावती,
औ जूनी भींत माथै
आंसूड़ां रा छांटा
किण रा है?
जिकौ पीढ़ी दर पीढ़ी
बधता ईज जावै है।

उवा कुण ऊपाड़ै है
लोई सूं झरझरती चूंदड़ी ओढ’र
खेत रै मांय चारा री गांठड़ी,
उवा कुण घुमावै है घरट
भारीपेट नै साथै ले’र
उवा कुण न्हांखै है डुसकौ
जियाजूण सूं तंग होवती-होवती।

कठै गया थारै हाथां वाळा
तिरसूळ अर कटारी,
किण ठौड़ बिसरगी,
उवा आंख्यां मांयली रीस,
जिकण सूं सोंख लेवती
भूंडा रगतबीज,
गाडर किंकर हुयौ
उवा थांरौ नाहर,
किण भांत हुयगी
साव निबळी,
कठै है थारै हाथां मांयलौ
रगताळू खप्पर,
उवा अनाचार रौ दमण करणौ
किण जागा बिसर गी थूं?

क्यूं थूं है ऊमणदूमणी,
क्यूं थूं रैवै है जूती री ठौड़,
तमतमाती आंख्यां रै तेज सूं
मारै नी बंधण रा काळींदर,
देवै नी हाथ रौ झफीड़
उण आफतड़ी माथै
जिकण थनै
बांध’र राखी रसोड़ा रै चूल्हां साथै,
बण खफराळी
कद डगळा भरसी थूं
शिव री छाती माथै,
कद थूं करसी किळकार
इण घोर अंधार मांय,
कद थूं मारसी
थारै सपनां नै मारण वाळां नै,
चारूं कानी सूं
तोड़ तेखळा लोह रै जड़ाव रा
कद भरसी थूं दुनिया मांय
मिनख होवण री हुंकार,
थनै कोय नी समझै मिनख,
आपरै हाथां ई पूंठ थापतां
थनै कहणौ है कै –
‘म्हैं कोय ढांढ़ौ कोनी
‘म्हैं कोय कळपती गाडर कोनी,
म्हैं कोय उड़ती तीडी कोनी,
म्हैं कोय थकी-मांदी ऊंदरी कोनी,
म्हैं मिनख हूं, म्हारै अंतस मांय वेदना पळै है,
म्हैं राखूं धीरप अर आंख्यां मांय पाणी
इण परुस सूं सौ गुणा बधतौ,
कद कहसी थूं आ बात कै –
सुणौ निबळां-खळां –
म्हारै ई चेतन मांय ऊगै है सपना
म्हैं कोय गाडर कोनी
म्हैं इण जगत री जणनी हूं।

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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