झमकू

लिखती रैयी

कागद बापू नै

अ’र जोंवती रैयी

बाट पड़ूत्तर री।

दिन

सिरकता गया

आंधी में रेत

ज्यूं।

पण कागद नीं आयो।

भुजाई

काकी अ’र

सायन्यां सूं मिलणै रा

सुपना चितारती

झमकू नै

याद आती उण दिनां री

जद बा खेल्या करती

पी’र री बाखळ मैं

सता ताली।

निसरणी

गड्डा

भाईल्यां साथै

पण बाबल रो कागद।

नीं आयो झमकू रै

कुण बुलावै उण नै

पी’र, मांई मां रै

राज मं।

गा-सांसर/खेती बाड़ी

कूटणों पीसणों/पोवणो

इणी कामां लैखै

खींचती रैयी डोर

घर गिरस्ती री

पी’र री ओल्यूं नी

बिसरी झमकू

लुगायां री गिंगरथ

कुचरता उणरी पीड़

अ’र निकळ ज्यावतो

निस्कारो।

चिमनी रैच्यानणै

फैरु लिखण बैठती

झमकू कागद

बापू नै।

उडीक

निढाळ

कर न्हाखी

अ’र हुयग्यी

बीमार झमकू

पण नीं कागद आओ

अ’र नीं कोई समचार

बापू रै गांव स्यूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली मार्च-जून 1996 ,
  • सिरजक : श्याम महर्षि ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान
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