म्हारौ जमानौ जीवता कौरणण थकी

बातौबात लड्यौ है

माथै सड्यौ है

अवै त’एनौं ऊंट

जई पाक्तिए बै

एनै हमज़ी लौ कै

बापड़ौ बेकी पड्यौ है।

तै क्यूं म्हैं हाम्बर्यु

मैं क्यू

तै हाम्बर्‌यू कै कुन्जाणै?

म्हुं तौ कैतो र्‌यौ

नै तू टल्लावी रई

जाणै हूरज ऊगी र्‌यौ हुवै

पण अवड़ै आतम्यो हूरज़

नै ऊगै, काल हवार पैल।

जौतराईग्या गुदा

पूग्यं पैल जुदा त’नै थएं

पण कई शकै कै

खेंसा ताणी मएं

एक बीज़ा नं गळं खेंसाएं

जीव घबराए

नै गाड़ा नै

एकाध खाड़ा मएं खैंसी लई जएं।

नै जातं आवतं मनक

ऊदू हामू कई जएं।

सानै सानै

मारै खेतर मएं, मरसं, डेंडं नै बोजं

वावी आवी

पण अवै?

ऊगी आव्या हैं कास

क्यं हम्बाड़त है एनु मोडू

नै म्हारा पोग?

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : ज्योतिपुंज ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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