तौ म्हां जावांला कठै?
जावण सूं फायदौ कांई?
किणसूं पूछांला मारग?
अेकाअेक सगळा सही मारग गमगा है
रिसी-मुनी आप-आपरै मारग माथ चाल'र असफळ हुयगा
इण कारण म्हां किस्यौ मारग चुणांला?
जे नीं जावण सूं चल जावतौ
तौ म्हैं अठै बैठौ-बैठौ
छाणा री अगनी सूं सरीर नीं तापतौ
छट्ठै घर सूं मसाण कित्तौ आघौ है?
क्यूं के
म्हैं नीं हूं नदी
नीं चावूं
चाँद सूरज रै जठै तांईं रौ
घूमणौ-भटकणौ।
सुण्यौ
सरग आघौ है
दांन-पुन कर्यां मानखौ अेक दिन पूगै
बूढ़ी माँ कैवै
वा ई सरगां जावैला
क्यूं के भइजी गया
धिन है उणांरी हिम्मत
इत्तौ मारग चालणौ वै किण विध दाय कियौ?
म्हैं सरग नीं चावूं
(उरवसी-इमरत सारू जे म्हारौ लोभ कम नीं है)
वौ घणौ अटपटौ मारग है
कंटीला विचारां रौ बोझ
इणी कारण
म्हैं दांन देय'र लेवणौ सीख्यौ हूं
म्हनै सीधौ नरक मिळैला
वौ ई ठीक है। वौ ई चावूं हूं
म्हैं तौ उल्टौ नरक रौ कीड़ौ बणूंला।
म्हारी ज़िंदगानी बीत जावै
सरदी में चिलम फूंकता।