डाफाचूक हुयोड़ो म्हारो मन

करै मीरां सूं सवाल

म्हारी बडेरण!

थूं म्हारी अस्मिता

थूं म्हारो सनमान

पण अेक बात बताय

धोरां सूं समदर तांई

करी जातरा

थारै पगां चक्कर हो कांई?

दुख्या तो होसी पग?

थाक्यो तो होसी मन?

थारी हूंस मांय

आई तो हुसी कदेई मांदगी?

म्हारी बडेरण!

ली तो होसी बिसांई कदैई

प्रीत री छियां मांय?

जगी तो हूसी नेह री भूख?

कीकर पीयो इतणो विख

ही कांई सिव?

के पछै किरसण री थाह?

लड़ी राजावां सूं

खांडा-खड़ग बिनां ई,

म्हलां नै दुत्कार

ऊभी जन रै मंच

तनां रै बाणां बिधग्यौ हुसी हीयौ

इतणी पीड़ कीकर पीयी?

सुण म्हारा सवाल

मीरां रै होठां मुळक बापरी

होळै-सी बोली-

गूंगी!

सोधणौ हो थारी मुगती रौ गुटकियौ,

जुगां-जुगां री अंधेरी कोठड़्यां

सोरै सांसां कियां खुलती बावळी,

कियां खुलता अजड़ किवाड़,

मिलती कियां गूंगां नै जबांन?

म्हारी लाडेसर!

म्हैं तो फगत मिनख ही

म्हारी लड़ाई म्हारै सूं ही,

पण

म्हारी जातरा

थारै तांणी!

स्रोत
  • पोथी : इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कविता ,
  • सिरजक : कृष्णा जाखड़ ,
  • संपादक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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