जंगळ सूं निकळ,

बस्ती में आग्या-जरक!

भाईड़ो! चेतो राख्या।

बै पीवै है रगत देह रो पण,

छींटो नीं लागण दे।

छाती पर बैठ चेतना सोसै,

थां नै नीं जागण दे।

बूढा जवान लुगाई टाबर,

कोई हुवै बां रै नीं पड़ै कीं-फरक!

भाईड़ो! चेतो राख्या!

पी’वणा है पी जावै सांस,

खोवै जद नींद में माणस।

लटका दिखा’र करै गटका,

मळाई खा’र छोडै छाणस।

जद भी पधारै नवैं रंग अर रूप में,

बोला रै जासी थां रा सगळा ई-तरक

भाईड़ो! चेतो राख्या!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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