कुण इण

काचै घट रै मांहें

इतरो इमरत

घोळ गयो?

कठै देख्यौ

कदै जांणू

उणरी सूरत

नहीं पिछांणू

कांई ठा, क्यूं

आनै-छांनै

म्हारो मन

रगदोळ गयो!

कुण इण

काचै-घट रै मांहैं

इतरो इमरत

घोळ गोय!

कीकर किण-विध

आयो झट-पट

अमीं कठा सूं

लायो नट-खट?

पात्र-कुपात्र

बिना परख्यां

कुण रस ढ़ोळ गयो?

इण काचै

घट रै मांहैं कुण

इतरो इमरत

घोळ गयो?

काचो घट

झट-पट मिट जावै।

बचै उदासी

ओळूं आवै!

हिय रा छाळा

घणैं हेज सूं

कुण पम्पोळ गयो?

इण काचै

घट रै मांहैं कुण

इतरो इमरत

घोळ गयो?

घट टूटै

मिटै घड़ीजै!

पण कुम्हार रो

मन नीं धीजै!

जूनीं माटी

जुगां-जुगां री

कोरो

झोळ नयो!

इण काचै

घट रै मांहैं कुण

इतरो इमरत

घोळ गयो?

कदै विरमै

कदै थाकै।

घड़त चाक री

चेतन राखै।

खा’तो भटकातो

पाणी नैं

चढ़ा हिलोळ गयो!

इण काचै

घट रै मांहैं कुण

इतरो इमरत

घोळ गयो?

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै