बगत री रेत मांय पगल्या धरण री

उणमादी वासना म्हां में नीं।

म्हे इतियास रै सिलाखंड रा जीवता जागता फाज़िल हां।

री सकुंतळा, थारी आंख री पांपड़ माथै

दुसयंत रै चुंबन रौ निसांण। कोरिया में जरासंध रौ कंकाळ।

अेसिया रै आकास में गिरजड़ां रा टोळा-रा-टोळा।

म्हे जीवां हां जुग री सींवाड़ माथै,

जूंना नाविकां रा हाड पिंजर। काळीदास, थे किसी

अलका रा पलायनवादी कवी हौ? बादळ गैला?

थांरी काव्य-वेदिका मांय म्हांरै जीवण री अरचणा—

खिरियोड़ौ कुमळायौ फूल है।

राजावां-राजावां में लड़ाई, लोह रौ टकराव ! म्हे

खांडव-दाह री अगन-ज्वाळा में बळ'र राख व्हियोड़ा

फूल हां : म्हांरौ

पिरामिड हिरोसिमा अर नागासाकी है।

री सकुंतळा, थारी आंगळी रा अगन-कणां सूं बुझाय दै

राजमैल रै दिवळै री जोत। टूटण दै सपनौ दुसयंत रौ।

उजास सू अंधारौ भलौं।

ज़िंदगानी री अग्गर गती में रामेस्वर रौ सेतुबंध

संका क्यांरी?

नुवै प्रभात रै कोमल तड़कै मांय आसा री जोत

म्हांरी आंख में लोह री चमक है।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : हेम बरुआ ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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