होळै कुणमुणावण आळै ख़ुद रै मन नै

वौ हैंकड़ी रै

हिलतै पालणै में थेथड़ दियौ

पण ख़ुद उणनै नींद कठै?

आं दिनां उणनै रातीजोगै री

सिकायत व्हेगी ही

सिलगाई च्यारमिनार : खारै धुं अै री

गोळमदाजी करतां

कुणमुणावतै मन नै झोला देवण लागौ

कोई क्रांतिकारी आंटौ देय् ‌र

वौ लोगां री निजरां रौ ठीयौ व्हेणौ चावै हौ

मानेता लिखारा बेजां गोदम घालै है

सगळा कुरस्यां अड़ा अक्कड़धज व्हे मेल्या है

वौ उठावैला ख़िलाफ़त रौ खांडौ

मानेता नांव मिटावैलौ रबड़ लेय'र

लिखैलौ नुवां लिखारा रा नांव

अर सगळां रै बिच्चै

चिमकैलौ नांव उण ख़ुद रौ

उण ख़ुद रौ

कुणमुणावतै मन नै वौ फेरूं

हळवै'क झोटायौ

बाण रै मुजब

इलमारी कनली

मौळी पड़्योड़ी भींत माथै

बेमतलब भटकै हा च्यार खटमल

वौ ऊभौ व्हियौ अर ‘बुक सैल्फ’ सूं निकाळ'र

बांचण लाग्यौ अेक पोथी

‘अस्तित्ववाद’

‘लाजिकल पाजिटिज्म’

ख़ुद री चिमठी सूं पकड़ लिया वौ

अैई दो सबद

आंरै अरथ री चिंता

करूंला पछै

हाल तौ अै कांम रा है...सबद ही।

मानेता लिखारा साळा

बेजां चरचीज रह्या है

बौ खुणैं में देख्यौ

अेक मकड़ौ मस्ती सूं फिरतोड़ौ

आगै चाल्यौ

पछै पेन में स्याई भर'र

वौ लिखण नै बैठौ

अर बस लिखतौ रह्यौ

काल री डाक सूं समीक्सा टीप

जावणी चाईजै

साहित जगत री अंधेरगिरदी मिटावणी पड़ैली

रात आधी सूं बेसी ढळगी

पण वौ लिखतौ रह्यौ

तड़कै री बगत कुरसी पर बैठां-बैठां

उणरी आंख लागगी

कुणमुणावण आळै मन रौ पालणौ

थमगौ

इलमारी रै कनली

भींत माथै

च्यारूं खटमल

हाल तांईं फिरै हा बेमतलब !

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : मंगेश पाडगांवकर ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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