आस निरास में
अळूझ्यो
कितरी परतां में
लुक्यो
आज तांई कोई
पार न पायौ
कोई भेद न जाण्यौ
मन रौ
मन लोभी मन
लालची
मन चंचळ मन
चोर
मन रै मते मत
चालज्यै
पल पल में मन
और
जाणतां थकां ईं
औ मन पंछी
जियां उड्यो
रुळियार बादळ
जियां भटक्यौ
किसो कुम्हार औ
मन घड़्यौ
किसी माटी रौ
चाक कर्यौ
मन मूरख समझ्यो
नहीं पड़्यौ पछांटां खाय।