जिणरो आंगण

म्हारो नीं

जिणरी छात

म्हारी नीं

जिणरा आवण-जावण रा

दरूजा म्हारा नीं

हवा-रोसणी देवण वाळी

खिड़कियां म्हारी नीं,

उण घर नै कैवणो पड़ै

म्हनैं म्हारो घर

आपरो घर

इस्यो दुखदाई धोखो

कांई हुय सकै

खुदोखुद नैं देवणो?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : पुनीत कुमार रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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