सोचूं

अेक घर बणावू

जिण मांय हुवै

थोड़ा'क बिळ

थोड़ा'क घौंसला

थोड़ी 'क बोदी जमीन

अर रैवूं आपरै

बैळियां सागै

कीं कीड्यां, मकोड़ा

की पांख, पंखैरू

अेक विरछ

अर म्हैं

पण नीं हुवै उणमैं

सांप बिच्छू

चील-गिरजड़ा

अर कांटा आळा

थूर

राजनीति रा।

स्रोत
  • सिरजक : वाजिद हसन काजी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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