अेक दिन गढ़ बोल्यो
तोड़ नाखो म्हारी भीतां
अर मोटा दरूजा
इतियास बणनै रै कोड में
म्हैं भागतो रैयो
म्हारै भाठै-भाठै में
उफणतो रैयो जोस
आखै वखत में
म्हैं मिनख रै रगत में
जलम्यो
रगत में बड़ो हुयो
अर रगत में ई निरखतो रैयो
खुद नै
म्हारै सारू लड़ी फोजां
माच्यो घणो घमसांण
म्हैं गाजतो रैयो
तोपां रै पाण
इतियास बणता रैया
हाथी, घोड़ा अर ऊंटां रा
खुटा अर ठांण!
म्हनै उण दिन ई
दह ज्याणो हो
जिण दिन खुलग्या म्हारा दरूजा
अर म्हैं रैयगो फगत
देखणजोग!
कोई सोचता होसी
म्हारा सुरगबासी धणी
जका म्हारै सारू
आपरी छाती माथै झेल्या गोळा
खैर, म्हनै आ तो ठा पड़ी के
वखत रो अेक आंटो
अैड़ो भी है के
आज म्हैं तिसायो हूं
रगत सारू नी
पाणी सारू
म्हनै भी सोच है
म्हारै छेलै बखत
म्हारो इतियास कांई बणसी
कांई म्हैं इतियास सूं
अळगो हूं
तो अब आ ई केवूं
तोड़ नाखो म्हारी भींता
अर मोटा दरूजा
नुवै इतियास सारू
स्यात इतियास
इंयां ई बणै
थे कांई सोचो हो?