मती खा भलांई च्यानणी रात में

चिलकतै तारां री सौगन

मती ल्या चाहे नैणां रै मारग

हिवड़ै मांय उफणीजती नेह री धार

म्हैं मानूं कै साची है थूं

अनै थारी प्रीत साची

पण म्हैं ठहर्‌यो

गांव-गवाड़ री भेळप में बड़तो-निसरतो

अंतरियै री अबखायां में घुळीजतो-तणीजतो

जे प्रीत पाळूं तो गवाड़ में बदनाम

जे थानै बिसराउं तो प्रीत बदनाम

पण थूं बता म्हैं कांई करूं

हां, मानूं कै दोषी हूं मैं

पण दोष

थानै आसी निगै थारै ही अंतस मांय।

जे थूं निरखैली स्सो कीं

फगत म्हारली निरख सूं।

अर थूं निरखै है नितर इण भांत

नैह मैं झरता जीव

कद चावै अेकलड़ो जीवण

माणस तो माणस, भाटा भीड़ मरै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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