अेक दिन नदी

उतर म्हारै भीतर

मचा दीन्ही रमझोळ

अर पूछै म्हारी पीड़

रूह देखै धड़कन कानी

अर बिस गयी

सुध-बुध

घर-संसार री

थारी ओळयां मांय

बूढै नैणां सूं बैवण लाग्यो

अेक दरिया आंसुवां रो

रीतग्यो प्राण

बेजान अर बंजर

अेक निष्प्राण डील

ना राग, ना रंग, ना नाद

कीं नीं बच्यो

इण काया मांय

पण अजैई ठाह नीं

कीकर सुणीजै

इण सूनी देही मांय

थारी प्रीत रो अणहद नाद।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : मीनक्षी आहूजा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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