काल

जद तू म्हारै सागै ही

हवा में सुगंध मैसूस हुया करती ही

हवा रा बदळता रुख

मोवणा लाग्या करता हा

नित नूवा अरथ

दिया करता हा मनै

पण आज

जद तू म्हारै सागै है

हवा री सुगंध

कोई अरथ कोनी देवै

इण रै बदळतै रुखा री

पिछाणा गमगी है

काल

जद तू म्हारै सागै ही

म्हारी रुचि ही

रुता रै बदळाव मे

मैं चावतो

रुता रोज बदलै

पण आज

जद तू म्हारै सागै है

रुता रो बदळाव भी

अकारथ हुयग्यो

अबै रुता चावै

रोज बदळै

कीं फरक कोनी पडै

काल

जद तू म्हारै सागै ही

आभै रा बदळता रंग

नूवा नूवा अरथ

दिया करता हा मन

मैं वा रगा रो

खुलासौ जाणतो हो

पण आज

जद तू म्हारै सागै है

आभै रा बदळता रंग

नूवा अरथ कोनी देवै

आभो सिंदूरी हुवै

या सलेटी

मन काळो लखावै

म्हारी सागोतर

काल अर आज बिच्चै

आयोड़ी बदळाव

अकारण कोनी

काल

जद तू म्हारै सागै ही

थारै सू मिलता'ई

ताजगी बापर जाया करती ही

थारी सासा मे

सगीत अर सुगंध लखावती

सासा री आच

अर डील'र मास'र

अेड़ै-छेडै घूम्या करता हा

हवा री सुगंध

रुता रै बदळाव

अर आभै रै रंगा रा अरथ

पण आज

जद तू म्हारै सागै है

थारो सागै हुवणो

नूवो वादो कोनी लखावै

अबै तू म्हारै घरां

चूल्है माथ रोट्या सेकै

थनै मा

अर मनै बापू कैयर

आगळी अपड़ा लेवै

नान्हा कंवळा हाथ

आपणै आंगणै में रमै

कीं तोतला सुर

मैं किया भूल जावूं

म्हारै कांधा माथै

कोई बोझो कोनी?

तैल

लूण

अर लकड़ी री

जुगत जोड़ण खातर

घर अर दफ्तर रै बिच्चै

सिट्टल री गळाई धूमतो म्हैं

बाकी बच्योड़ै बगत में

कीं अलायदी सुविधावां री

जुगत जोगा खातर

किणी भी काम मे

अळूझ्योडो म्हैं

आगै खातर

किणी नूवै काम री

तलास मे भटकतौ म्हैं

अबै

तू बता कद फुरतस लाधै मनै

कीं सोचू—

आभै रो रंग कैडो है

हवा रो रुख कांई है

रुता बदल रैयी है

या?

स्रोत
  • पोथी : काल अर आजरै विचै ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1
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