आंसूडा पी डाल्या?

तो

रात’र दिन बढ़ता

विचारां रा घाव

खाली कागद तांई फैलग्यां

ओल्यां में छिपग्या

लै मांय रमग्या

होळे-होळे

दीमकां री

खुराक बणग्या।

देख'र थिर रैग्यो

अचाणचक

हिवडै रा तार हिलग्या

भटकते ने गेलौ मिलग्यो

हीमत अर आतम बिसवास सूं

ऊबड़-खाबड़ रस्तै माथै

अबै

देख रह्यो हूं

सूखे रूंखा माथै

मधुमास री मुळक

पग-पग माथै

फूलां री मैक, अर

उड़ती पराग रै कण कण मांय

उभरती तसबीर।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : दीपचन्द सुथार ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा
जुड़्योड़ा विसै