थूं क्यूं आई है घरां सूं बा’रै
बळधा नै टोळ’र
पांणी पावण रै मिस
तळै रै ऊपरां।
थंन्नै देख
सरमाय जावै चांद री चांनणी
तेज कम व्है जावै अरक रौ ऊगतां।
हे अचपळी नार!
झींणै-झींणै वायरियै मझ
लहरावतौ थारौ पचरंगियौ चीर
जांणै झाला देवै है
बादळां नै बरसण सारूं।
हे मरुथळ री मनमोवणी मूरत!
किण भांत घड़िज्यौ है
थारौ रळियावणो रूप
म्हनै लागै कै
असेस अकाशगंगावां
कीनौ है सिणगार
अर बणाई है थारी
सांप्रत आ सूरत!
कदास! थूं बता देवै
मनगत बातां
हे जीव जड़ी!
थारा संगी बणग्या है
अवधूत अै आकड़ा
फोग हद फूठरा
टणकोड़ा टूळा
अर
थांरौ पथ बुहारण लागी है
खेजड़ियां खिलकारती
बोरड़िया वडभागणी!
थंन्नै निरख रैयी है
सुरंगी सेवण
धामण अर धकड़ै सागै!
हे रूप री रति!
थैं कर दिया है
कईयक मन खिण
अर अळूझ गिया है वै
तिहारै सपना में ऊंडा!
हे माड़ेची मूमल!
थारी आ जूनौडी़ उपमा
कित्ती हैं सांतरी
क्यूं कै थांरी
भळकतै भाळ पर भौंहा
किण तरै सूं तणी है
रूपास में रीझती आंख्यां
किण ठौड़ जा रुकी है
अर
ओपतै ओढणै मांयनै
इण तरै सूं झांकै कै..
सांप्रत मूमल ई लखावै
‘करिया’ पर आवतै उण महेन्द्रा री
जकौ अनेकूं बार आयौ है
भौंरो बण थारै रसरूप पर रीझनै।
हे गजगत बैवती गोरड़ी!
थन्नै निरखण लागा है
सैकड़ूं नैण अपलक अर थिर
तिहारै कळा रूप पर
वांरिया जा सकै
दुनिया रा घड़ियौड़ा
अनेकूं फूठराप।
हे थळेची!
इत्तौ लियौड़ो फूठराप थूं
दिवस अर रैण
क्यूं भमै हैं लूवां अर आंधियां बिचाळै
क्यूं बैवै है पग उरभाणी
ऊकळतै आभै नीचै
तपतै तावड़ै
थळियां-धोरां मझ!
म्हैं समझ ग्यौ थारलौ साच
म्हैं समझ ली हिवड़ै री पीड़
औ रूप तो फगत दुनिया देखै है
पण, कुण जाणै थांरी मांयली बात
कै
थांरौ जलम, थांरौ साचलो भाग!
थांरौ रूप
फगत ऊंडौ निसास!
क्यूं कै
थांरै बंट आया है अभाव
अठै थांरौ
कांई मांयनौ राखै रूपास
अठै तो
काम आया करै
हाथां री कारीगरी
हुनर खुद आप रा
हां! इणसूं ई पळ सकै पेट
इणसूं ई गुड़ सकै
सैवट आ जीवण री गाडी
हां! इण वास्तै हीज आया है पांती
मुळक री जागां मुरझाव
थारै भागां में उळझाव!