(1)

कण्ठ मारो तरसातो मलग्यो रे,
टूंटियां पाणी क्यूं रुकग्यो?
चायरो प्यालो तो मलग्योरे,
टापरां पाणी क्यूं नठग्यो?
हाय रे! दन केड़ा आया?
लोठियो पाणी रो ढळग्यो।

(2)

पूड़ियां पोथी री मलगीरे,
सागरो जाल्यो क्यूं ढळग्यो?
हिचकियां माने आवे रे,
गळा में कागो क्यूं अटक्यो?
हाय रे! दन केड़ा आया?
लोठियो पाणी रो ढळग्यो।

(3)

धान तो बेजड़रो मलग्यो रे,
पीसवा वाळो क्यूं नटग्यो?
दाळ तो कूलतरी मलगी रे,
लूण रो दाणो क्यूं गटग्यो?
हाय रे! दन केड़ा आया?
लोठियो पाणी रो ढळग्यो

(4)

बादळो गरजण ने आयो,
मोरियो नाचण क्यूं नटग्यो?
इन्दरतो बरसण ने आयो,
नदियां सागर क्यूं नटग्यो?
हाय रे! दन केड़ा आया?
लोठियो पाणी रो ढळग्यो।

(5)

बेवड़ा वाळी तो मलगीरे,
खेत क्यूं करसां ने नटग्यो?
करम तो चम चम चमक्यो रे,
धरम क्यूं मनखां रो गमग्यो?
हाय रे! दन केड़ा आया?
लोठियो पाणी रो ढळग्यो।
स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1995 ,
  • सिरजक : चतुर कोठारी ,
  • संपादक : शौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री मासिक
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