आपनैं कांई बतावां

हथेळी रा अै छाला!

नीं तो फूट सकै,

नीं मिट सकै

बस रिसै

बस रिसै।

म्हैं कोसिस करी इलाज री

थे बोलिया नीं करी

अजी बहोत करी

पण करां कांई

साबर में कोनी आवै।

अब तो आं नैं पाळां

अर जमारो गुजारां

हथेळी रा अै छाला।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : मनोज शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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